नई दिल्ली (समर्थ संवाद)- आम बोल चाल में आपने कई बार 420 संख्या जरूर सुनी होगी। जब भी कोई बेईमानी, ठगी या छल करता है, तो लोग उसे 420 कहते हैं। आपने कई बार इस तरह की बातें सुनी होंगी, जैसे- ‘तुम तो बड़े 420 हो यार’, ‘वो तो 420 निकला’। लेकिन बहुत कम लोग ही इसके पीछे की वजह जानते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हम धोखाधड़ी या छल करने वाले के लिए 420 संख्या का ही इस्तेमाल क्यों करते हैं? इसकी जगह हम 421 या 520 क्यों नहीं बोलते? अगर आपको भी इसके बारे में जानकारी नहीं हैं, तो ये खबर आपके बड़े काम की है। आज हम 420 संख्या के पीछे का मतलब बताने जा रहे हैं।
दरअसल, भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के कारण ठगी, बेईमानी करने वाले लोगों को 420 कहा जाता है। जब भी कोई व्यक्ती ठगी, बेईमानी, धोखाधड़ी जैसे काम करता है, तो उस पर पुलिस के द्वारा धारा 420 लगाई जाती है। यही वजह है कि आम बोलचाल में लोग इस नंबर का ही इस्तेमाल करते हैं।
क्या है धारा 420
कानूनी तौर पर जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के साथ धोखा करता है, छल करता है या बेईमानी से किसी दूसरे व्यक्ति की बहुमूल्य वस्तु या संपत्ति के साथ हेर फेर करता है या उसे नष्ट करता है, तो उसके खिलाफ धारा 420 लगाई जा सकती है। इतना ही नहीं अगर वो इस काम में किसी की मदद भी करता है, तो वह अपराधी माना जाता है।
इसके अलावा जब कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरे के साथ जालसाजी करता है, उसके नकली हस्ताक्षर करके, आर्थिक और मानसिक दबाव बनाकर उसकी संपत्ति को अपने नाम करता है तो उसके खिलाफ भी धारा 420 लगाई जा सकती है।वहीं इन मामलों की सुनवाई प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की अदालत में होती है। अपराधी को इसमें अधिकतम सात साल की सजा हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। ये अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। इसका मतलब ये है कि इन मामलों में थाने से बेल नहीं मिलती। ऐसे मामलों में खुद जज अदालत में फैसला करते हैं।
धारा 420 के तहत सजा
इस अपराध के लिए आईपीसी की धारा 420 के तहत अधिकतम 7 साल की सजा का प्रावधान है। साथ ही दोषी व्यक्ति पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। यानी इसमें थाने से बेल नहीं मिलती। ऐसे मामलों में जज अदालत में फैसला करते हैं। हालांकि अदालत की अनुमति से दोनों पक्षों के बीच सुलह भी हो सकती है।