उत्तर प्रदेश (समर्थ संवाद)- हस्तिनापुर के बस्तौरा नारंग गांव में दिल दहलाने वाले हादसे में स्कूल बस ने नर्सरी की छात्रा को कुचल दिया। इस हादसे ने व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कोरोना काल के बाद एक बार फिर खुले स्कूलों की खस्ताहाल ट्रांसपोर्ट व्यवस्था सवालों के घेरे में आ गई। आखिर, परिवहन विभाग ने किन मानकों को पूरा कर स्कूल वाहनों को सड़क पर उतारने की अनुमति दी। अगर मानकों की अनदेखी हुई तो इसके लिए जिम्मेदार कौन लोग हैं।
कोरोना के कहर से स्कूल-कालेज बंद
कोरोना के कहर के चलते जनपद में स्कूल-कालेज बंद रहे। बच्चों को स्कूल लाने व ले जाने के लिए लगी बसें परिसर में खड़ी धूल फांकती रहीं। बसों के लिए लगे स्टाफ को स्कूल प्रबंधन ने छुट्टी दे दी। एक बार फिर 56 दिनों के बाद संक्रमण का ग्राफ गिरा तो स्कूल खुल गए। बसें व टेंपो और ई-रिक्शा की भी व्यवस्था भी शुरू हो गई, लेकिन यह मानकों को पूरा कर रहे या नहीं, यह किसी को नहीं पता। सात फरवरी से खुले स्कूलों में पुरानी व्यवस्था से बच्चे पहुंच रहे हैं।
बच्चों की संख्या बढ़ी, लेकिन बसें पूरी क्षमता से नहीं चल रहीं। इस पर एक बस में बच्चों की संख्या बढ़ा दी गई है। बसों के लिए रूट ज्यादा बड़ा दे दिया गया है, जिस कारण चालक भागमभाग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की जल्दी में लगा रहता है। परिवहन विभाग द्वारा अभी तक वाहनों की चेकिंग को कोई अभियान नहीं चलाया गया है। डग्गामार वाहनों की सड़क पर भरमार
नगर में टेंपो व ई-रिक्शा की भरमार है
अधिकांश वाहन स्कूल में बच्चों को लाने ले जाने में लगे हुए हैं। इन वाहनों में बच्चों को भूसे की तरह भरा जाता है। स्कूलों से जुड़ी ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को परखा जाएगा। अगर मानकों पर खरे नहीं उतरे, तो ऐसी बसों का संचालन बंद कर दिया जाएगा। प्रशिक्षित चालक ही स्टेयरिग संभालेंगे।
अमित कुमार गुप्ता, एसडीएम मवाना
स्कूल बस के लिए जरूरी गाइडलाइन
-स्कूल बस पीले रंग की होनी चाहिए।
-बस पर स्कूल का नाम व फोन नंबर अंकित हो।
-बस के आगे व पीछे स्कूल बस अंकित हो।
-आकस्मिक सेवाओं के नंबर अंकित हों।
-सभी खिड़कियों के बाहर लोहे की जाली लगी हो।
-प्राथमिक उपचार के लिए किट उपलब्ध हो।
-अग्निशमन यंत्र लगा होना चाहिए।
-दरवाजों में ताला लगा हो और सीटों के बीच पर्याप्त स्थान होना चाहिए।
-बस चालक को वाहन चलाने का कम से कम पांच साल का अनुभव हो।